अनुवाद से भाषागत भिन्नता दूर हो सकती है #

 


# अनुवाद से भाषागत भिन्नता दूर हो सकती है #

भारतीय अनुवाद साहित्य के सौजन्य से भारतीय अनुवादकों लेकर आनलाइन माध्यम द्वारा आयोजित चतुर्दश आलोचनाचक्र एवं बहुभाषी काव्यपाठ अनुष्ठान के संपादक शरत चन्द्र आचार्य के संयोजन में आयोजित हुई है। इस कार्यक्रम में विशिष्ट भारतीय अनुवादक प्रदीप कुमार दाश, चित्तरंजन ब्रह्मा, मंजुला अस्थाना महांति, डॉ संजय कुमार मिश्र आलोचक के रूप में भाग लेकर अनुवाद में मूल लेखक और अनुवादक में संतुलन अपेक्षित होता है, अनुवादक दूसरे दर्जे का साहित्यकार नहीं बल्की उसकी अपनी पहचान है, अनुवाद शब्दानुगामी हो या स्वतन्त्र हो, भारतीय संस्कृति की मूलभूत एकता अनुवाद के माध्यम से ही साध्य है विषय पर गुरुत्वपूर्ण आलोचना प्रस्तुत किये थे। प्रत्येक भाषा के निजस्व रुप और शौली की विशेषता होती है। भारत जैसे बहुभाषी राष्ट्र के सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक विकास क्षेत्र में अनुवाद की भूमिका महत्वपूर्ण है ।



अनुवाद,भाषागत भिन्नता को दूर कर सकती है। यथार्थ अनुवाद के लिए अनुवादक निजी भाषा के सांस्कृतिक,साहित्यिक, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के विषय में पूर्णतः अवगत रहें ऐसी सभी की मान्यता रही। कार्यक्रम के द्वितीय भाग में विभिन्न भारतीय भाषाओं के वरिष्ठ तथा युवा अनुवादकों को लेकर मीता पट्टनायक, जयश्री दोरा के संयोजन में अनूदित काव्यपाठ संपन्न हुआ। जिसमें जम्मु कश्मीर से डॉ आदर्श प्रकाश,केरल से डॉ आर.शशीधरन,असम से गायत्री देवी बोरठाकुर, उत्पल डेका, कोलकाता से श्रीतन्वी चक्रबर्त्ती,सनातन महाकुड, महाराष्ट्र से पारमिता षड़ंगी एवं ओडिशा से डॉ अंजुमन आरा,स्वप्ना बेहेरा, संगीता रथ प्रमुख ने विभिन्न भाषाओं में अनुदित काव्यपाठ प्रस्तुत किया।

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